by Ishan Roy
मेरी लेखनी à¤à¥‚ख की उपज़ है
यह शीरà¥à¤·à¤• मेरे मसà¥à¤¤à¤¿à¤·à¥à¤• की उपज़ बिलà¥à¤•à¥à¤² à¤à¥€ नही है अपितॠयह तो मनोरंजन वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤¾à¤°à¥€ जी की नकà¥à¤¸à¤²à¤µà¤¾à¤¦à¥€ से लेखक तक के अपने सफर को à¤à¤• पंकà¥à¤¤à¤¿ मे पिरोने की कोशिश है जो कि आज उनà¥à¤¹à¥‹à¤¨à¥‡ जयपà¥à¤° साहितà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¥à¤¸à¤µ में जयपà¥à¤° बà¥à¤•à¤®à¤¾à¤°à¥à¤• के अंतरà¥à¤—त आलोचक अरà¥à¤¨à¤¾à¤µ सिनà¥à¤¹à¤¾ तथा साहितà¥à¤¯ अकादमी यà¥à¤µà¤¾ पà¥à¤°à¤¸à¥à¤•à¤¾à¤° विजेता लेखक हंसदा सौवेंदà¥à¤°à¤¶à¥‡à¤–र से बातचीत के दौरान कही।
उनकी आतà¥à¤®à¤•à¤¥à¤¾ के अनà¥à¤µà¤¾à¤¦à¤¿à¤¤ संसà¥à¤•à¤¾à¤°à¤£ पर बात करते हà¥à¤¯à¥‡ जब अरà¥à¤¨à¤¾à¤µ ने ये जानना चाहा कि उनà¥à¤¹à¥‡ जीवन मे सबसे जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ गà¥à¤¸à¥à¤¸à¤¾ किस बात पर आता है तो उनका जवाब था कि “à¤à¥‚ख मेरे जीवन का पहला और सबसे बड़ा गà¥à¤¸à¥à¤¸à¤¾ हैâ€à¥¤ उनका कहना था कि मैं उस वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ का दà¥à¤¶à¥à¤®à¤¨ हूठजो लोगों को à¤à¥‚ख से मरने को तड़पता छोड़ देती है और शायद इसी के विरोध के कारण कई बार वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ à¤à¥€ मेरी दà¥à¤¶à¥à¤®à¤¨ बन जाती है ।
हंसदा ने जब उनकी पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤• का à¤à¤• पà¥à¤°à¤¸à¤‚ग याद दिलाया जिसमें वो पतà¥à¤¥à¤° फेंक कर मारने की 2-3 घटनाओं का वरà¥à¤£à¤¨ करते हैं तो उनà¥à¤¹à¥‹à¤¨à¥‡ अपने अतà¥à¤¯à¤‚त सघरà¥à¤·à¤ªà¥‚रà¥à¤£ और अà¤à¤¾à¤µà¥‹à¤‚ मे गà¥à¤œà¤°à¥‡ जीवन की बातें साà¤à¤¾ करते हà¥à¤¯à¥‡ बताया कि कैसे वो अपनी जीवन की दà¥à¤¶à¥à¤µà¤¾à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ से लड़ते-लड़ते नकà¥à¤¸à¤²à¥€ बन जाते हैं । इसी सफर के दौरान 24 साल की उमà¥à¤° मे जेल के अंदर वो पहली बार पà¥à¤¨à¤¾ लिखना सीखते हैं। उनà¥à¤¹à¥‹à¤¨à¥‡ इस बात को वरà¥à¤£à¤¿à¤¤ करते हà¥à¤¯à¥‡ कहा कि “जेल दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ का सबसे बड़ा विशà¥à¤µà¤µà¤¿à¤¦à¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯ हैâ€à¥¤
उनका कहना था कि अगर à¤à¥‚ख से लोगों को न बचाया गया तो वे डाकू बन जाà¤à¤à¤—े कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि “कà¥à¤°à¤¾à¤‚तिकारी और डाकू मे बहà¥à¤¤ बारीक अंतर होता हैâ€, तथा à¤à¤• आम गरीब आदमी मे इतनी समठनही होती कि वो ये अंतर कर सके खासतौर पर तब कि जब वो à¤à¥‚ख से मरने की कगार पर खड़ा हो ।
जब उनसे उनकी पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤• के साहितà¥à¤¯à¤¿à¤• पकà¥à¤· पर बात करने की कोशिश की गयी तो उनका जवाब था कि “वासà¥à¤¤à¤µà¤¿à¤• कहानियों मे साहितà¥à¤¯à¤¿à¤• गà¥à¤£ नहीं होते परंतॠउनमें सच होता हैâ€, यही कारण है कि वो पाठकों को पसंद आती हैं।
बांगà¥à¤²à¤¾à¤¦à¥‡à¤¶ निरà¥à¤®à¤¾à¤£ के समय के विà¤à¤¾à¤œà¤¨ के कटॠअनà¥à¤à¤µà¥‹ को साà¤à¤¾ करते हà¥à¤¯à¥‡ उनका कहना था कि “à¤à¤¾à¤°à¤¤ का विà¤à¤¾à¤œà¤¨ नही हà¥à¤†, वासà¥à¤¤à¤µ में तो बंगाल और पंजाब का विà¤à¤¾à¤œà¤¨ हà¥à¤†,†यही कारण है कि बाकी देश के लोग उनका दरà¥à¤¦ नही समठपाते। आज़ादी को महज़ à¤à¤• दिन की छà¥à¤Ÿà¥à¤Ÿà¥€ की संजà¥à¤žà¤¾ देते हà¥à¤¯à¥‡ उनका कहना था कि वासà¥à¤¤à¤µ मे सरकारों ने जमीनी सà¥à¤¤à¤° पर वैसे पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤¸ नही किठजैसे करने चाहिठथे, इस कारण से लोगों का नकसलवाद की तरफ à¤à¥à¤•à¤¾à¤µ बà¥à¤¾ कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि वे उनà¥à¤¹à¥‡ अपने जैसे लगे।
नकà¥à¤¸à¤²à¤µà¤¾à¤¦ से अलग होने के बाद के अपने सफर का जिकà¥à¤° करते हà¥à¤¯à¥‡ वे चाय की दà¥à¤•à¤¾à¤¨ को जà¥à¤žà¤¾à¤¨ का सबसे बड़ा à¤à¤‚डार बताते हैं जहां पर काम करने के दौरान उनकी सामाजिक और राजनीतिक विषयों पर समठबà¥à¥€à¥¤ उनà¥à¤¹à¥‹à¤¨à¥‡ आदिवासी समाज को वासà¥à¤¤à¤µ में हमारे समाज से जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ सà¤à¥à¤¯ बताया कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि वे ईमानदार होते हैं, à¤à¥‚ठनही बोलते, चोरी नही करते जो कि वासà¥à¤¤à¤µ में à¤à¤• सचà¥à¤šà¥‡ मनà¥à¤·à¥à¤¯ के गà¥à¤£ होने चाहिठ।
शà¥à¤°à¥‹à¤¤à¤¾à¤“ं के पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨à¥‹à¤‚ का जवाब देते हà¥à¤¯à¥‡ वे à¤à¤¾à¤—à¥à¤¯, पूरà¥à¤µ जनà¥à¤®à¥‹à¤‚ के फल आदि की अवधारणा को यह कहते हà¥à¤¯à¥‡ पूरà¥à¤£à¤¤à¤ƒ नकार देते हैं कि ये सब केवल हमें विरोध करने से रोकने के लिठबनाई गयी à¤à¥à¤°à¤¾à¤‚तियाठहैं, अनà¥à¤¯à¤¥à¤¾ à¤à¤¸à¥€ आमानता कैसे सà¥à¤µà¥€à¤•à¤¾à¤°à¥à¤¯ हो सकती है कि देश की 73% संपतà¥à¤¤à¤¿ पर केवल 1% लोगों का अधिकार हो।
परंतॠअंत मे वे यह ज़रूर सà¥à¤µà¥€à¤•à¤¾à¤° करते हैं कि धीरे-धीरे ही सही, थोड़ा बहà¥à¤¤ बदलाव तो समाज मे आ रहा है। उनका कहना था कि कम से कम लोगों मे जागरूकता तो बà¥à¥€ है अनà¥à¤¯à¤¥à¤¾ आज वे इस साहितà¥à¤¯à¤¿à¤• महोतà¥à¤¸à¤µ में नही होते। बातचीत का अंत उनà¥à¤¹à¥‹à¤¨à¥‡ इस सकारातà¥à¤®à¤• नोट के साथ किया कि अगर वे लोगों को अपनी बात समà¤à¤¾à¤¨à¥‡ मे सफल रहे तो आगे शायद हमारे समाज मे कम से कम लोग à¤à¥‚खे तो नही मरेंगे और न ही डाकू या नकà¥à¤¸à¤²à¥€ बनेंगे ।