इतिहास से मिटे अक्षर

इतिहास से मिटे अक्षर

कल के सफ़ेद पन्नो पर लिखे काले अक्षर आज का इतिहास है| कल को जन्मा एक साधारण सा बालक आज इतिहास का एक प्रतापी सम्राट है| कल जिसकी क्रूरता के चर्चे दहशत का पर्याय थे आज उसके योद्धा होने के प्रमाण विलुप्त हो चुके गाँवों और शमशान बन चुके शहरों में है| सदियों से कल के वर्तमान और आज के इतिहास की नीव को जिसने अपने प्रयास से लगातार मज़बूत किया है वो है असंख्य लेखकों की अनगिनत लेखनी है| पर इतिहास लेखन की इस कला में इतिहासकारों की लेखनी ने कहीं ना कहीं इतिहास के सारे शूरवीरों के साथ समान न्याय नहीं किया हैं|आज जब देश में तमाम तरह के लेखक या शोधकर्ता उन शूरवीरों की बिखरी कड़ी को जोड़ रहे हैं तब भारतीय इतिहास का एक अलग चेहरा हमारे सामने आ रहा है| भारत का इतिहास कई खण्डों, आदर्शों, नियमों, उसूलों और आधारों पर समय-समय पर बहुतों द्वारा लिखा गया पर इतिहास के इतने दृष्टिकोण होने के बावजूद जिस एक आधार ने भारतीय इतिहास को बुरी तरह प्रभावित किया वो है सदियों से होते आये बाहरी आक्रमण| भारत में हमेशा से ही इतिहास लिखे गए और फिर किसी के द्वारा नष्ट कर दिए गए| ऐसी ही अनकही कहानियों और खोते जा रहे इतिहास के कुछ पन्नो को समेटने का काम जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल ने तीसरे दिन किया|

युवा साहित्य अकादमी अवार्ड विजेता तथा आइवरी थ्रोन जैसी किताब के लेखक मनु.एस.पिल्लई ने व्याख्यान की शुरुआत करते हुए कहा कि भारत में इतिहास गिने चुने लोगों के इर्द-गिर्द ही घूमता रहता है और इससे दूसरों द्वारा किये गए कार्यों का व्याख्यान कहीं ना कहीं पीछे छूट जाता है| अपनी किताब आइवरी थ्रोन: क्रोनिकल ऑफ़ हाउस ऑफ़ त्रंवाकोर में ऐसे ही एक राजपरिवार कि पूरी जीवनी दर्शाने वाले मनु की इस किताब को लेकर बहुत प्रशंसा मिली है| अपने किताब के माध्यम से उन्होंने सेतु लक्ष्मीबाई, जोकि ट्रावन्कोर की महारानी थी, द्वारा लागु किये गए तमाम सुधारों की चर्चा की है जिसमें शिक्षा, संस्कृति, बेहतर जीवनशैली पर किये गए निवेशों को दर्शाया है| केरला के शैक्षणिक स्तर की बात करते हुए उन्होंने सेतु लक्ष्मी बाई के सुधारों को इसका आधार बताया| अपनी किताब का एक सार बताते हुए मनु ने कहा कि एक पाठक इस किताब में पायेगा कि किस तरह एक 5 साल कि बच्ची महारानी बना दी जाती है और फिर कैसे केरल में वामपंथी सरकार के आने के बाद उससे उसके सारे महल छीन लिए जाते है जिसको वो बड़े आराम से बिना किसी द्वेष के छोड़ देती है|

संस्कृत, तमिल, मराठी जैसी भाषा की जानकार एवं इन भाषा में कई किताबें लिखने वाली इंदिरा पीटरसन ने अपनी किताब में थान्जावर के राजा सर्फोजी के सांस्कृतिक, शिक्षा, कला के सुधारों को बताया| शिक्षा के क्षेत्र में सर्फोजी द्वारा किये गए सुधारों की चर्चा करते हुए इंदिरा ने कहा कि “जब पूरे भारत में ब्रिटिश स्कूल नहीं बना पा रहे थे तब उस वक़्त सर्फोजी 4 भाषाओँ के स्कूल बना चुके थे जिसमें सबके लिए शिक्षा मुफ्त थी| अपने बनारस प्रवास के दौरान 5000 मेनुस्क्रिप्ट को सर्फोजी ने थान्जावर के विकास के लिए लाया था| वही 4500 पुस्तकों की एक पुस्तकालय का निर्माण भी कराया था| स्वास्थ के लिए सर्फोजी ने खुद एलोपैथी की पढाई तीन सालों तक की थी तथा यूनानी, आयुर्वेद के समीकरण को कविता में लिखवाया तथा प्रजा उसको याद कर सके और बाद में उसका उपयोग कर सके’|

हालाँकि भारत का इतिहास हमेशा से गौरवशाली रहा है और हमारे इतिहास के इतने मज़बूत स्तभ का ही कारण है कि सालों से आये इतने झंझावातों के बावजूद भी हम आज सख्तीसे खड़े है और भविष्य में दुगने विश्वास के साथ आगे बढ़ने को तैयार है पर इन सब के साथ हमे सभी को जोड़ने कि दिशा में भी काम करना चाहिए और अगर युवा इसमें अपन योगदान देगा तो वो और भी बेहतर होगा|

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